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आगाही / हरिवंशराय बच्चन

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|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
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:::'''साँवर का गीत'''

पच्छिम ताल पर न जाना, न नहाना, लछिमा!

::मत जाना, लछिमा; मत नहाना, लछिमा!

पच्छिम ताल पर न जाना, न नहाना, लछिमा!


छितवन के तरुवर बहुतेरे

उसको चार तरु से घेरे,

उनकी डालों के भुलावे में मत आना लछिमा!

::उनके पातों की पुकारों, उनकी फुनगी की इशारों,

उनकी डालों की बुलावे पर न जाना, लछिमा!

पच्छिम ताल पर न जाना, न नहाना, लछिमा!

उनके बीच गई सुकुमारी,

अपनी सारी सुध-बुध हारी;

उनकी छाया-छलना से न छलाना, लछिमा!

न छलाना, लछिमा; न भरमाना, लछिमा!

::न छलाना, लछिमा; न भरमाना, लछिमा!

उनकी छाया-छलना से न छलाना, लछिमा!

पच्छिम ताल पर न जाना, न नहाना, लछिमा!


जो सुकुमारी ताल नहाती,

वह फिर लौट नहीं घर आती,

हिम-सी गलती; यह जोखिम न उठाना, लछिमा!

::न उठाना, लछिमा; न उठाना लछिमा!

जल में गलने का जोखिम न उठाना, लछिमा!

पच्छिम ताल पर न जाना, न नहाना, लछिमा!


गारे गंधर्वों का मेला!

जल में करता है जल-खेला,

उनके फेरे, उनके घेरे में न जाना, लछिमा!

::उनके घेरे में न जाना, उनके फेड़े में न पड़ना!

उनके फेरे, उनके घेरे में न जाना, लछिमा!

पच्छिम ताल पर न जाना, न नहाना, लछिमा!


उनके घेरे में जो आता,

वह बस उसका ही हो जाता,

जाता उनको ही पिछुआता हो दिवाता, लछिमा!

::हो दिवाना, लछिमा, हो दिवाना, लछिमा!

जाता उनको ही पिछुआता हो दिवाना लछिमा!

पच्छिम ताल पर न जाना, न नहाना, लछिमा!


जिसके मुख से 'कृष्‍ण' निकलता,

उसपर ज़ोर न उनका चलता,

उनके बीच अगर पड़ जाना,

अपने साँवर बावरे को न भुलाना, लछिमा!

::न भुलाना, लछिमा; न बिसराना, लछिमा!

अपने साँवर बापरे को न भुलाना लछिमा!

पच्छिम ताल पर न जाना, न नहाना, लछिमा!


::मत जाना, लछिमा; मत नहाना, लछिमा!

पच्छिम ताल पर न जाना, न नहाना, लछिमा!
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