भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatKavita‎}}
<Poem>
उस दिन ख़ुशी के मारे चाँद भी रास्ता भटक गयाऔरचाँदनी इठलाते हुए उतर आईउस आँगन मेंजहाँ बरगद ने सौ बरस तपस्या की थी I
कोई आने वाला था.... I
 बरगद ख़ुश था उसके हर पत्ते ने दुआ में हाथ उठाए
ख़ूब आशीर्वाद बरसाए
घर के सभी चमकदार बर्तन खुश ख़ुश थेकोई आने वाला था........Iफिर से मंजेगे मँजेंगे ,कमरे खुश ख़ुश थे - फिर संवरेगे .सँवरेंगे । मुंडेरे खुश थी ख़ुश थीं - खूब ख़ूब सजेंगीपानी खुश ख़ुश था- कोई पीएगा, नहायेगानहाएगा हवा खुश ख़ुश थी- कभी जोर ज़ोर से तो कभी धीरे से बहेंगीबहेगी दिन, मिनट, घंटे खुश ख़ुश थे - खालीपन ख़त्म हुआडिब्बो में राखी रखी दालें, आटा और चावल खुश ख़ुश थे-
नए पकवान पकेंगे
चींटियाँ खुश थीख़ुश थीं- खूब ख़ूब खाना बिखेरेगाबिखरेगा ऐसी खुशियों ख़ुशियों की जब बारात सजीएक सफ़ेद रुई का गोला मेरी गोद में आ गिरेगिराउस रुई के गोले की दो काली-काली आँखें खुलीऔर उन्होंने मुझसे पुछापूछा- "माँ , तुम खुश ख़ुश हो " I और
मैंने जाना कि
ख़ुशी क्या होती है I मैंने अभी उसे ठीक से प्यार भी नहीं कियादुलार भी नहीं कियानज़र का टीका भी नहीं किया
कि
वह सफ़ेद खरगोश ख़रगोश की तरहकुलांचे कुलाँचे भरती , भाग गयीगई छोटा सा बस्ता उठाये उठाए, स्कूल . उसके लौटने तक एक उम्र बीत गयीऔर मैंने जानाइंतज़ार क्या होता है I
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,142
edits