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Kavita Kosh से
पल भर कहीं भी चैन से रहते नहीं हैं हम
किश्ती भंवर भँवर में छोड़ दें, डाँडों डाँड़ों को तोड़ दें
तेवर, ऐ ज़िन्दगी तेरे सहते नहीं हैं हम
लोगों ने बात -बात में हमको दिया उछाल
शायर तो अपने आप को कहते नहीं हैं हम
एक शोख शोख़ की नज़र ने खिलाये हैं ये गुलाब
यों ही हवा की तान पे बहते नहीं हैं हम
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