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Kavita Kosh से
चैन था मर भी जाते कभी
यह तो मर-मर के मरके जीना हुआ
हमको तलछट मिला अंत में
वह तो बस मुस्कुरा भर दिए
अब तो पतझड़ है शायद! गुलाब
ठाठ पत्तों का झीना हुआ
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