भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=द्विज }} {{KKPageNavigation |पीछे= |आगे=गुंजरन लागीं भौंर-भीरै…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=द्विज
}}
{{KKPageNavigation
|पीछे=
|आगे=गुंजरन लागीं भौंर-भीरैं केलि-कुंजन मैं / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 1
}}
<poem>
'''मनहरन घनाक्षरी '''
''(वसंत से प्रकृति में परिवर्तन का अर्द्धजाग्रत अवस्था में वर्णन)''

आज सुख सोवत सलौनी सजी सेज पैं, घरीक निसि बाकी रही पाछिले पहर की ।
भड़कन लाग्यौ पौंन दच्छिन अलच्छ चारु, चाँदनी चहूँघाँ घिरि आई निसिकर की ॥
’द्विजदेव’ की सौं मोहिं नैंकऊ न जानि परी, पलटि गई धौं कबै सुखमा नगर की ।
औंरैं मैन गति, जति रैन की सु औंरैं भई, औंरैं भई रति, मति औंरैं भई नर की ॥१॥
</poem>
916
edits