भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=द्विज }}{{KKAnthologyBasant}} {{KKPageNavigation |पीछे=बायु बहारि-बहारि रह…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=द्विज
}}{{KKAnthologyBasant}}
{{KKPageNavigation
|पीछे=बायु बहारि-बहारि रहे छिति, बीथीं सुगंधनि जातीं सिँचाई / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=जानि-जानि आपने ही गेह कौ अराम / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 1
}}
<poem>
'''मत्तगयंद सवैया'''
''(महाराज ऋतुराज के सम्मानार्थ तैयारियों का वर्णन)''
बंदनवार बँधे सब कैं, सब फूल की मालन छाजि रहे हैं ।
मैनका गाइ रहीं सब कैं, सुर-संकुल ह्वै सब राजि रहे हैं ॥
फूल सबै बरसैं ’द्विजदेव’, सबै सुखसाज कौं साजि रहे हैं ।
यौं ऋतुराज के आगम मैं, अमरावति कौं तरु लाजि रहे हैं ॥१२॥
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=द्विज
}}{{KKAnthologyBasant}}
{{KKPageNavigation
|पीछे=बायु बहारि-बहारि रहे छिति, बीथीं सुगंधनि जातीं सिँचाई / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=जानि-जानि आपने ही गेह कौ अराम / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 1
}}
<poem>
'''मत्तगयंद सवैया'''
''(महाराज ऋतुराज के सम्मानार्थ तैयारियों का वर्णन)''
बंदनवार बँधे सब कैं, सब फूल की मालन छाजि रहे हैं ।
मैनका गाइ रहीं सब कैं, सुर-संकुल ह्वै सब राजि रहे हैं ॥
फूल सबै बरसैं ’द्विजदेव’, सबै सुखसाज कौं साजि रहे हैं ।
यौं ऋतुराज के आगम मैं, अमरावति कौं तरु लाजि रहे हैं ॥१२॥
</poem>