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|रचनाकार=द्विज
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|पीछे=या बिधि की सोभा निरखि / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=हौंन लागे सोर चहुँ ओर प्रति कुंजन मैं / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 2
}}
<poem>
"'मनहरन घनाक्षरी'''
"(परिपूर्ण ऋतुराज का प्रकाश रूप से वर्णन)"
चहँकि चकोर उठे, सोर करि भौंर उठे, बोलि ठौर-ठौर उठे कोकिल सुहावने ।
खिलि उठीं एकै बार कलिका अपार, हलि-हलि उठे मारुत सुगंध सरसावने ॥
पलक न लागी अनुरागी इन नैननि पैं पलटि गए धौं कबै तरु मन-भाँवने ।
उँमगि अनंद अँसुवान लौं चहूँघाँ लागे, फूलि-फूलि सुमन मरंद बरसावने ॥१५॥
</poem>
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"'मनहरन घनाक्षरी'''
"(परिपूर्ण ऋतुराज का प्रकाश रूप से वर्णन)"
चहँकि चकोर उठे, सोर करि भौंर उठे, बोलि ठौर-ठौर उठे कोकिल सुहावने ।
खिलि उठीं एकै बार कलिका अपार, हलि-हलि उठे मारुत सुगंध सरसावने ॥
पलक न लागी अनुरागी इन नैननि पैं पलटि गए धौं कबै तरु मन-भाँवने ।
उँमगि अनंद अँसुवान लौं चहूँघाँ लागे, फूलि-फूलि सुमन मरंद बरसावने ॥१५॥
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