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|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 2
}}
<poem>
'''नाराच'''''
(परिपूर्ण ऋतुराज का प्रकाश रूप से वर्णन)''
कहूँ-कहूँ बनीं-ठनीं, लसैं सु बापिका घनी । जहाँ-तहाँ मलिंद-बॄंद-बृंद की प्रभा ठनी ॥
चकोर चारु-चारु चाँदनीन चौंथते चहूँ । कपोत-गोत कौ तहाँ सु सोर होत है कहूँ ॥२५॥
</poem>
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'''नाराच'''''
(परिपूर्ण ऋतुराज का प्रकाश रूप से वर्णन)''
कहूँ-कहूँ बनीं-ठनीं, लसैं सु बापिका घनी । जहाँ-तहाँ मलिंद-बॄंद-बृंद की प्रभा ठनी ॥
चकोर चारु-चारु चाँदनीन चौंथते चहूँ । कपोत-गोत कौ तहाँ सु सोर होत है कहूँ ॥२५॥
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