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Kavita Kosh से
एक दीवार खड़ी ही रही सर के आगे
डाँड़ हम खूब चलाते हैं, मगर क्या कहिए!
नाव दो हाथ ही रहती है भँवर के आगे
देखिये ग़ौर से जितना भी हसीन उतना है
एक जादू का क़रिश्मा करिश्मा है नज़र के आगे
यों तो चक्कर था सदा पाँव में दीवाने के
नींद क्या खूब है आयी तेरे दर के आगे
जोर चलता नहीं क़िस्मत किस्मत की हवाओं पे, गुलाब!
जैसे चलती नहीं तिनके की लहर के आगे
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