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Kavita Kosh से
किसीकी शबनमी आँखों में झिलमिलाये हुए
एक अरसा हो गया फूलों की चोट खाए खाये हुए
किया है प्यार बिना देखे भले ही उनसे
करोगे याद भी हमको हमारे बाद कभी
अभी जो छोड़ के जाते हो मुँह फिराए फिराये हुए
मुकाम ऐसे भी आये हैं ज़िन्दगी में कई
सिवा गुलाब के रंगत है किसकी लाल यहाँ!
बहुत हैं देखे जलाए हुए, सताए सताये हुए
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