भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=द्विज }}{{KKAnthologyBasant}} {{KKPageNavigation |पीछे=औंरैं भाँति कोकिल, …
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=द्विज
}}{{KKAnthologyBasant}}
{{KKPageNavigation
|पीछे=औंरैं भाँति कोकिल, चकोर ठौर-ठौर बोले / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=देखत हीं बन फूले पलास / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 3
}}
<poem>
'''किरीट सवैया'''
''(ऋतुराज की स्तुति-वर्णन)''
मंद दुचंद भए बुध-बैनहिं, भाँखि सकैं कबि हूँ कबितान न ।
आइ लजाइ चलेई गए गुरु, आपनौं सौ लिऐं आपनौं आनन ॥
कौंन प्रभा करतार! बखानिहैं, मंगल-खाँनि बिलोकि कै कानन ।
सीस हजार हजार करैं, पैं न पार लहैंगे हजार जुबानन ॥३१॥
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=द्विज
}}{{KKAnthologyBasant}}
{{KKPageNavigation
|पीछे=औंरैं भाँति कोकिल, चकोर ठौर-ठौर बोले / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=देखत हीं बन फूले पलास / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 3
}}
<poem>
'''किरीट सवैया'''
''(ऋतुराज की स्तुति-वर्णन)''
मंद दुचंद भए बुध-बैनहिं, भाँखि सकैं कबि हूँ कबितान न ।
आइ लजाइ चलेई गए गुरु, आपनौं सौ लिऐं आपनौं आनन ॥
कौंन प्रभा करतार! बखानिहैं, मंगल-खाँनि बिलोकि कै कानन ।
सीस हजार हजार करैं, पैं न पार लहैंगे हजार जुबानन ॥३१॥
</poem>