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आंख में उगती मूंछें / एम० के० मधु
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16:52, 7 जुलाई 2011
<poem>
एक परी की तरह
वह
रो्ज़
रोज़
रूबरू होती है
धूप और छांव के गोले
पैरों से उड़ाती हुई
योगेंद्र कृष्णा
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