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Kavita Kosh से
तमाम उम्र की इस बंदगी से भारी है
वो एक बात जो होठों होँठों पे आके ठहरी है
वो एक बात तेरी हर अदा से प्यारी है
कभी तो सेज पे दुल्हन के, कभी मरघट में
गुलाब! तुमने भी क्या ज़िन्दगी गुजारी गुज़ारी है!
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