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Kavita Kosh से
अब ये छोटा-सा सफ़र ख़त्म हुआ ही समझें
बुलबुले उठ के उठके किनारों से बात करते हैं
दो घड़ी आपकी नज़रों पे चढ़ गए थे गुलाब
रात भर चाँद-सितारों से बात करते हैं