भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
अपने गर्जन की प्रतिध्वनि सुनकर था आप सहमता
क्रुद्ध कराघातों से दृढ दृढ़ अर्गला नहीं हिलती थी
सोया श्रांत मृगेंद्र, मुक्ति की युक्ति नहीं मिलती थी
सोया था हिमवान, सो रही थी गंगा की धारा
2,913
edits