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Kavita Kosh से
हर लहर हुँकारी भरती सो गयी.
यद्यपि मणि-मोतियों का अकूत ढेर वहीं था
पर मेरी रूचि रुचि का उनमें एक भी नहीं था
मुझे मेरी अहमन्यता ही डुबो गयी.
सीपियाँ बटोरते-बटोरते साँझ हो गयी.
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