भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
दुआ लबों पे है और दर्दो-ग़म कराह में है
ये कौन शख़्स मुहब्बत की बारग़ाह बारगाह में है
दरख़्त वो जिसे पतझड़ ने ज़र्द-ज़र्द किया
मेरी तरह से वो तन्हाइयों तनहाइयों की राह में है
मलाल ये तो मुझे है ही तू मेरा न हुआ
ये ग़म अलग है कि कोई तेरी निगाह में है
सुगन्ध पाने की ख़्वाहिश में फूल तोड़ लिया