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13:58, 1 अगस्त 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=आदिल रशीद
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<Poem>
दिखावा जी हुजूरी और रियाकारी <ref> अदाकारी</ref> नहीं आती
हमारे पास भूले से ये बीमारी नहीं आती
जो बस्ती पर ये गिद्ध मडला रहे हैं बात तो कुछ है
कभी बे मसलिहत <ref>बिना लालच,बिना मतलब </ref> इमदाद<ref> मदद </ref> सरकारी नहीं आती
पसीने कि कमाई में नमक रोटी ही आएगी
मियां अब इतने पैसों में तो तरकारी <ref> मदद </ref>नहीं आती
</poem>
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