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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजूरंजन प्रसाद |संग्रह= }} <poem> मैंने कहा--दुख और म…
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{{KKRachna
|रचनाकार=राजूरंजन प्रसाद
|संग्रह= }}
<poem>
मैंने कहा--दुख
और माँ का चेहरा म्लान हो गया
शिथिल पड़ने लगीं देह की नसें
कहां रही ताक़त
जवान गर्म खून की
दौड़ता फिरे जो
अश्वमेध के घोड़े-सा
मैंने कहा--मां
और उसकी आंखों में आंसू आ गए।
(9.7.01)
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=राजूरंजन प्रसाद
|संग्रह= }}
<poem>
मैंने कहा--दुख
और माँ का चेहरा म्लान हो गया
शिथिल पड़ने लगीं देह की नसें
कहां रही ताक़त
जवान गर्म खून की
दौड़ता फिरे जो
अश्वमेध के घोड़े-सा
मैंने कहा--मां
और उसकी आंखों में आंसू आ गए।
(9.7.01)
</poem>