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पत्थर और नदी -2 / सुरेश यादव

176 bytes added, 04:07, 12 अगस्त 2011
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पहाड़ों के पत्थर सीख लेते जब ऊँचाइयों नदी से टूटते हैं तब - पत्थर बहुत 'टूटते ' हैं डूब कर भी नदी में बहना चाहते नहीं धार से जूझते हैं दर्प को छोड़ना
विरोध करते हैं - पत्थर सागर में समर्पित होने का नदी के साथ आगोश में आकर जब भूल जाते अपने ही दर्प में टूटना
रेशा-रेशा घिस कर चाहते हैं जब तलहटी नदी की धार से खेलना नदी के साथ बहना पानी की नर्म उँगलियों का नर्म स्पर्श पाकर सम्मान में बिछ कर बिछने लगते हैं जकड़ कर धरती को सच में - समर्पित होने से पहले श्रद्धा के मार्ग पर चलने लगते हैं रेत होना बेहतर समझते धीरे-धीरे पत्थर शिवलिंग बनने लगते हैं जल के अर्ध्य फिर उन पर श्रद्धा से चढने लगते हैं।
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