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कैटवाक / अवनीश सिंह चौहान

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पलछिन करती चिड़िया रानी
क़ैद सभी को कर लेती यहपॉप धुनों पर गाती रहतीजलते हुए चिराग़हरदम दीपक राग
बिना परों के उड़ती-फिरती
कुछ द्विअर्थी संवादों के
अनजानी मस्ती में खोए
आकर्षण झूठे वादों के
पल भर में बरसाती पानी
पल भर में है आग
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