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|रचनाकार='अना' क़ासमी
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<poem>
आराइशे-खुर्शीदो-क़मर किसके लिए है
जब कोई नहीं है तो ये घर किसके लिए है
शक़ था तिरे तक़वे पे ‘अना’ पहले से मुझको
वो ज़ोहराजबीं कल से इधर किसके लिए है</poem>