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|चित्र=Shakeel_bandayuni.jpg
|नाम=शकील शकील बदायूँनी
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<poem>रचना यहाँ टाइप करें</poem>
गुलशन हो निगाहों में तो जन्नत न समझना
दम भर की इनायत को मोहब्बत न समझना
क्या शै है मता-ए-ग़मो-राहत1 न समझना
जीना है तो जीने की हक़ीक़त न समझना
हो खै़र तेरे ग़म की कि हमने तेरे ग़म से
सीखा है मसर्रत को मसर्रत न समझना
निस्बत2 ही नहीं कोई मोहब्बत को खि़रद3 से
ऐ दिल कभी मफ़हूमे-मोहब्बत4 न समझना
ये किसने कहा तुमसे कि रूदादे-वफ़ा को5
सुनकर भी समझने की जरूरत न समझना
</poem>
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गुलशन हो निगाहों में तो जन्नत न समझना
दम भर की इनायत को मोहब्बत न समझना
क्या शै है मता-ए-ग़मो-राहत1 न समझना
जीना है तो जीने की हक़ीक़त न समझना
हो खै़र तेरे ग़म की कि हमने तेरे ग़म से
सीखा है मसर्रत को मसर्रत न समझना
निस्बत2 ही नहीं कोई मोहब्बत को खि़रद3 से
ऐ दिल कभी मफ़हूमे-मोहब्बत4 न समझना
ये किसने कहा तुमसे कि रूदादे-वफ़ा को5
सुनकर भी समझने की जरूरत न समझना
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