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|रचनाकार= दिनेश त्रिपाठी 'शम्स'
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आईने पर यक़ीन रखते हैं ,
वो जो चेहरा हसीन रखते हैं

आंख में अर्श की बुलन्दी है ,
दिल में लेकिन ज़मीन रखते हैं

दीन-दुखियों का है खुदा तब तो ,
आओ हम खुद को दीन रखते हैं

जिनके दम पर है आपकी रौनक ,
उनको फिर क्यों मलीन रखते हैं

विषधरों के नगर में रहना है ,
हम विवश होके बीन रखते है

ये सियासत की फ़िल्म है जिसमें ,
सिर्फ़ वादों के सीन रखतें हैं
</poem>
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