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|रचनाकार=पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"
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समझेगा कौन हमको इतना ज़रा बता दो
किस बात पे हैरां हो इतना ज़रा बता दो
ख़ामोश हैं निगाहें गुमसुम सी क्यूं तुम्हारी
"आज़र" ज़रा सा ठहरो, इतना ज़रा बता दो