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|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

|संग्रह=शेष बची चौथाई रात / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

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<poem>
सूना घर-आँगन लागे है ए साथी
बिन तेरे ना मन लागे है ए साथी

तुझसे थीं हर सिम्त बहारें, बिन तेरे
उजड़ा हर उपवन लागे है ए साथी

दुख से बोझिल साँसें रूकने को आतुर
थमती सी धड़कन लागे है ए साथी

नयनों का जल भूला सब मर्यादाएँ
जब चाहे बरसन लागे है ए साथी

जाने क्या है तुझसे दो दिन की यारी
जन्मों का बन्धन लागे है ए साथी
<poem>
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