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{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
|संग्रह=शेष बची चौथाई रात / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
सूना घर-आँगन लागे है ए साथी
बिन तेरे ना मन लागे है ए साथी
तुझसे थीं हर सिम्त बहारें, बिन तेरे
उजड़ा हर उपवन लागे है ए साथी
दुख से बोझिल साँसें रूकने को आतुर
थमती सी धड़कन लागे है ए साथी
नयनों का जल भूला सब मर्यादाएँ
जब चाहे बरसन लागे है ए साथी
जाने क्या है तुझसे दो दिन की यारी
जन्मों का बन्धन लागे है ए साथी
<poem>
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|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
|संग्रह=शेष बची चौथाई रात / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
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सूना घर-आँगन लागे है ए साथी
बिन तेरे ना मन लागे है ए साथी
तुझसे थीं हर सिम्त बहारें, बिन तेरे
उजड़ा हर उपवन लागे है ए साथी
दुख से बोझिल साँसें रूकने को आतुर
थमती सी धड़कन लागे है ए साथी
नयनों का जल भूला सब मर्यादाएँ
जब चाहे बरसन लागे है ए साथी
जाने क्या है तुझसे दो दिन की यारी
जन्मों का बन्धन लागे है ए साथी
<poem>