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{{KKRachna
|रचनाकार=मीर तक़ी 'मीर'
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इब्तिदा-ऐ-इश्क है रोता है क्या
सब्ज़ होती ही नहीं ये सर_ज़मीं सरज़मीं
तुख्म-ऐ-ख्वाहिश दिल में तू बोता है क्या
'मीर' इस को रायेगां खोता है क्या
''तुख्म= बीज''
