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|रचनाकार=पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"
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अभी बोल उठ्ठेगी, पत्थर कि मूरत
तेरी गर खुदा से है सच्ची मुहब्बत

नहीं मोल बिकती ,कहीं पर शराफ़त
झलकती है चेहरों पे, इसकी नज़ाकत

छुपे राज़ इनमें , न झूठी वकालत
बुजर्गों कि बातों में ,सच्ची अदावत

सुनाता हूँ तुमको, पुरानी कहावत
शर्मसार होती ,हमेशा जलालत

बड़ी मेहरबानी , ये हम पर इनायत
निगाहों से छ्लके , तुम्हारी बगावत

ये मासूम चेहरा, क्यामत-सी आँखे
मेरी यह दुआ है ,रहे तू सलामत

लिखे शेइर तूने ,लिखे खूब "आज़र"
ज़रा यह बता दे हैं किसकी बदौलत
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