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|संग्रह=आ सदी मिजळी मरै / सांवर दइया
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<poem>जिण ढाळै आयो आज आंख सूं बारै औ
मन-पीड़ बतासी जग नै चढ चौबारै औ

लागै दुख-धाड़ेती म्हांनै कोनी छोडै
सांस लेवतां ई होग्यो म्हांरै लारै औ

कीं देवाळ नईं तो ई म्हैं चावां थांनै
मन छेकड़ मन है कोनी रैवै सारै औ

आ मानी एक भाठै सूं टूटै कोनी गढ
जतन सूं राख कदै काम आसी थारै औ

बीज है बीज ओळख इण री अखूट ताकत
माटी री आं पुडतां नै कोनी धारै औ
</poem>
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