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<poem>जिण रस्तै दुनिया कैवै डर देखो
मन कैवै उणी रस्तै गुजर देखो

म्हैं कैवां सोच-समझ कर्‌या सगपण
बिना भीतांळो है म्हांरो घर देखो

मानी थांरी, औ जंगळ है जंगळ
पण आज तो अठै मंगळ कर देखो

स्सौ कैवै म्हैं भुजा एक दूजै री
हुयो लखावै बात रो असर देखो

घर खाला रो कोनी म्हैं ई जाणा
हथाळी मेल राख्यौ औ सर देखो
</poem>
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