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<poem>जीत री छोड हारो तो सरी
आ मौज नुंवी मारो तो सरी

जग सूं कांई थे आवो परा
म्हांरा ऐढा सारो तो सरी

जाणै जिका ई जाणै मिठास
आंसू होवै खारो तो सरी

रात-रात कठै रैवै सूरज
लेवो इण रो लारो तो सरी

ऊंची डाळां पण फूल थांरो
एकर मन में धारो तो सरी
</poem>
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