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[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
{{KKCatKavita‎}}<poem>गळी अजाणी
दुनिया री विगतां
आकाशवाणी
०००

भूलां ऐब म्हे
पण आ तो बताओ-
कीं है जेब में ?
०००

घरू रोवणा
काळै कोट री जेबां
घर रो धन
०००

घर-दफ्तर
पछै कीं दूजा काम
दिनूगै सिंझ्या
०००

घड़ीक साफ
आभो आंगणो दीखै
घड़ीक मैलो
०००
</poem>
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