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मैं राग हुआ तेरे मनका यह देह हुई वंशी तेरी
जूठी कर दे तो गीत बनूं बनूँ वृंदावन हो दुनिया मेरी
फिर कोई मनमोहन दीखा
बादल से भीने आंचल आँचल में!
अब रोम रोम में तू ही तू जागे जागूं जागूँ सोये सोऊंसोऊँजादू छूटा किस तांत्रिक का मोती उपजें आँसूं बोऊंआँसू बोऊँढ़ाई ढाई आखर की ज्योति जगी
शब्दों के बीहड़ जंगल में!
</poem>
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