भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
रोशनी पुरज़ोर करने में
चाट जाये जाए धूल की दीमक भले ही तन
मगर हरापन नहीं टूटेगा
वक्ष के ऊपर गढ़ी हैं
बन्धु! जब-तक
दर्द का यह स्रोत-सावन नहीं टूटेगा
हरापन नहीं टूटेगा
</poem>