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उतरते हुए / रमेश रंजक

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जेबों में सरकारी झिड़कियाँ लिए
घूमते रहे
महँगी पोशाकों के बग़ीचे में आहि्स्तेआहिस्ते
हम टूटी टहनी-से झूमते रहे
कितनी कमज़ोर हीन भावना लिए
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