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चुपचाप / पुष्पिता

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|संग्रह=हृदय की हथेली / पुष्पिता
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आँखों के भीतर
 आँसुओं की नदी है।है ।
पलकें मूंदकर
 
नहाती हैं आँखें।
 
अपने ही आँसुओं की नदी में
 दुनिया से थक कर।कर ।
ओठों के अन्दर
 
उपवन है,
 जीते हैं-- ओठहैं— ओंठ
चुप होकर स्मृति
 
प्यास से जल कर
 एकाकीपन की आग में।में ।
हृदय की वसुधा में
 
प्रणय का निर्झर नियाग्रा है
 मेरे लिए ही झरता हुआ…।हुआ… ।</poem>
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