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नक्श-ओ-निगार!
उसी मसरूफीयत मस्रूफीयत में बदगुमानी तुझको हुई!न मैं नासाज़,न नज़रें चुरा,गर्दां था वहाँ!थीं वो तुझको ही लुभाने की सारी तदबीरें!" तभी जानी सी,औ’ पेहचानी सी आवाज़ सुनी:“ग्रहण था मेरा,तो तुझको वो लग गया कैसे?” कही उसने,कि बात मेरे लबों से निकली? राज़ जाती हुई बदली ने फिर आख़िर खोला: नहीं वाक़िफ़ क्या उस अलहड़ की हरक़तों से तू?चाँद के गम्ज़ को,ग्रहण समझ के बैठी है?
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(ये एक असल घटना पर आधारित है – 05 जून 1993 को 54 साल के बाद पूरनमासी के चाँद को ग्रहण लगा था और ये खबर दुनिया भर में फैल गई थी..!)