भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
काँधों से पिंडलियों तक लटकी हुई क़बायें॥
वक़्ते-विदायेविदा-ए-गुलशन नज़दीक आ रहा है।
अब आशियाँ उजाड़ें या आशियाँ बनायें॥
</poem>