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Kavita Kosh से
हमारे शौक़ की है इंतहा क्या|
मुहब्बत का यही सब शगूल शगल ठहरा,
तो फिर आह-ए-रसा क्या ना-रसा क्या|
यहाँ दिल ही नहीं दिल से दुआ क्या|
दिल-ए-आफ़त-ज़दा का मुद्द'अ आ क्या,
शिकस्ता-साज़ क्या उस की सज़ा क्या|