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उजाले की खुशबू / सोम ठाकुर

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जिया किए केवल भीतर के मरुथल को
पालक पलक उठाते दिन का नया उदय है
तट पर बेहोश हुई शाम यह नहीं
है यह आरंभ नई मंज़िल का
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