भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
किससे क्या कहना है
सबके सब बहरे
राजा का दरबारी
विप्लव का अगुवा
डूबा है राजमहल
रंगो में गहरे
बेमतलब बातें,
सबकी औकातें
मंजिल तक जाने के
गलियारे सँकरे
भाषण उम्मीदों के
कागजी मसौदे,
खुले आम रौंदे,
सूरज के आँगन में
अँधियारे पसरे।
</poem>