भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माँ / अवनीश सिंह चौहान

1,181 bytes added, 13:48, 18 मार्च 2012
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <Po...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान
|संग्रह=
}}
{{KKCatNavgeet}}
<Poem>
घर की दुनिया
माँ होती है
खुशियों की क्रीम
परसने को
दु:खों का दही विलोती है

पूरे अनुभव एक तरफ हैं
मइया के अनुभव
के आगे
जब भी उसके पास गए हम
लगा अँधेरे में
हम जागे

अपने मन की
परती भू पर
शबनम आशा की बोती है
घर की दुनिया माँ होती है

उसके हाथ का रूहा-सूखा-
भी हो जाता
है काजू-सा
कम शब्दों में खुल जाती वह
ज्यों संस्कृति की
हो मंजूषा

हाथ पिता का
खाली हो तो
छिपी पोटली का मोती है
घर की दुनिया माँ होती है
</poem>
273
edits