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Kavita Kosh से
जो कार को केवल
सड़क पर देखते भर हैं
जिनके ख्वाबों तलक में भी
बसा है छकड़ा।
वस्तुत:
कविता में छकड़े का होना
नवाचार नहीं
लोकाचार है
रस-छंद-अलंकार सरीखा।
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