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यह सुनि सूर स्याम मन हरषे, पौढ़ि गए हँसि देत हुँकारी ॥<br><br>
भावार्थ :-- श्रीयशोदाजी श्यामसुन्दरको गोदमें श्रीयशोदा जी श्यामसुन्दर को गोद में लेकर छोटे पलँगपर पलँग पर सुलाती हैं ।मेरा । मेरा लाल आज बहुत अधिक खीझ गया! यह कहकर मधुर स्वरसे स्वर से गान करती हैं।वे हैं। वे स्वयं भी धीरे से लेट गयीं; तब श्यामसुन्दर ने शरीर को मोड़कर (अँगड़ाई लेकर)जम्हाई ली । माता हाथसे हाथ से थपकी देकर पुत्रको चुचकारने पुत्र को पुचकारने लगी, इतने में मोहन बड़ीआतुरतासे बड़ी आतुरता से हड़बड़ाकर उठ बैठे । (तब माता ने कहा-) `लाल! लेट जाओ! मैं अत्यन्त मधुर और कानोंको कानों को प्रिय लगनेवाली लगने वाली एक कहानी सुनाऊँगी !'सूरदासजी सूरदास जी कहते हैं कि यह सुनकर श्यामसुन्दर मनमें मन में हर्षित हो उठे, लेट गये औरहँसते और हँसते हुए हुँकारी देने लगे ।