भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKCatGhazal}}
<poem>
अब्र बेताब होके चीख़ पड़ा
बर्क़ अँगड़ाई लेके जाग उठी
फुरसतों के भी कुछ तक़ाज़े हैं
छुट्टियाँ चल रही हैं आ जाओ
</poem>
{{KKMeaning}}