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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार= भावना कुँअर |संग्रह=भाव-कलश / भावना कुँअर }}[[Category:हाइकु]]<poem>  डॉ0 [[भावना कुँअर]]की संवेदना निराली है । अपने गाँव के नीम के पेड़ की निबौंलियों को अपनी यादों के आईने में देखती है - नीम का पेड़/बहुत शरमाए/नटखट-सी/निबौंलियाँ उसको/खूब गुदगुगाएँ।गुदगुगाएँ 
तो उन्हें कहीं आँगन में खेलती धूप में माँ अनाज सुखाती दिखाई देती है ;जिसमें कबूतरी का समावेश उसे मार्मिक बना देता है-
 आज फिर माँ/अनाज़ सुखाएगी/वो कबूतरी/पल भर में सब/चट कर जाएगी।जाएगी भावना जी के [[हाइकु|ताँका ]] का हर एक शब्द पाठक के मर्म को छू लेता है । जीवन भर हर एक व्यक्ति किसी न किसी अभाव से व्यथित रहता है ; सम्भव: यही जीवन का सत्य है-  आँसू गठरी/खुलकर बिखरी/हर कोशिश/मैं समेटती जाऊँ/पर बाँध न पाऊँ।पाऊँ 
इन पंक्तियों की व्यापकता देशकाल की सीमाओं से परे हर इंसान की नब्ज़ पर हाथ रखती है।
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