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Kavita Kosh से
हम जिया किये केवल खाली आकाश पर
ठंडे सैलाब में बही वसंत-पीढ़ियाँ
पाँव कही कहीं टीके नही, इतने हलके हुए
लूट लिए वे मिले घबराकर ऊब ने