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{{KKRachna
|रचनाकार=शमशेर बहादुर सिंह
|संग्रह=सुकून की तलाश / शमशेर बहादुर सिंह
}}
बनियों ने समाजवाद को जोखा है
गहरा सौदा है काल भी चोखा है
दुकानों नई खुली हैं आज़ादी की
कैसा साम्राज्यवाद का धोखा है !
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|रचनाकार=शमशेर बहादुर सिंह
|संग्रह=सुकून की तलाश / शमशेर बहादुर सिंह
}}
बनियों ने समाजवाद को जोखा है
गहरा सौदा है काल भी चोखा है
दुकानों नई खुली हैं आज़ादी की
कैसा साम्राज्यवाद का धोखा है !
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