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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=गीत-वृंदावन / गुलाब खंडेलवाल
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[[Category:गीत]]
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'कोई राधा से कह देता
उसके लिए विकल है अब भी गीता-शास्त्र-प्रणेता

'यद्यपि योगेश्वर कहलाता
मैं सुख-दुःख में सम रह जाता
किन्तु ध्यान जब उसका आता
चुपके से रो लेता

'साथ रुक्मणि के भी रहकर
उसे न भूल सका मैं पल भर
आता हूँ नित यमुना-तट पर
मन की नौका खेता'

'कोई राधा से कह देता
उसके लिए विकल है अब भी गीता-शास्त्र-प्रणेता

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